हीमोफीलिया के बारे में कितना जानते हैं आप
सेहतराग टीम
हीमोफीलिया ऐसी दुर्लभ बीमारी है जिसके बारे में आमतौर पर लोगों को खुद ही नहीं पता होता। पूरे देश में इस बीमारी के सिर्फ 16 हजार मरीज रजिस्टर्ड हैं हालांकि इस बीमारी के बारे में जागरूकता की कमी को देखते हुए डॉक्टरों का मानना है कि इस संख्या से करीब 7 गुणा ज्यादा लोग इस बीमारी के शिकार हो सकते हैं।
क्या है हीमोफीलिया
आम तौर पर अगर हममें से किसी को चोट लगे और खून बहने लगे तो हम देखते हैं कि कुछ देर के बाद खून बहना अपने आप बंद होता है और चोट की जगह पर खून जम जाता है। खून के अपने आप जमने की ये प्रक्रिया प्रकृति ने इस लिए बनाई है ताकि इंसानी शरीर में किसी तरह का रक्तस्राव होने पर जान को खतरा न पहुंचे। खून के थक्के जमने में मदद के लिए हमारे शरीर में क्लॉटिंग फैक्टर होते हैं जो दरअसल कुछ खास तरह के प्रोटीन होते हैं। हीमोफीलिया के मरीजों में इन्हीं प्रोटीन की अनुपस्थिति या कमी होती है जिसके कारण रक्तस्राव होने पर खून का बहना बहुत देर तक बंद ही नहीं होता। ऐसे में मरीज की जान पर बन आती है। इंसानी शरीर में 13 तरह के क्लॉटिंग फैक्टर्स होते हैं जो प्लेटलेट्स के साथ मिलकर काम करते हैं और खून का थक्का जमने में मदद करते हैं।
क्या कहते हैं डॉक्टर
इस बीमारी के बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने बताया कि हीमोफीलिया के मरीजों में रक्तस्राव आसानी से होता है और खून का थक्का जमने में लंबा समय लगता है। ऐसे लोगों को अकसर आंतरिक रक्तस्राव भी होता रहता है और जोड़ों में रक्तस्राव के कारण उनके जोड़ों में भी अकसर दर्द और सूजन रहती है। ये एक दुर्लभ मगर जानलेवा स्थिति हो सकती है। इस बीमारी के तीन प्रकार हो सकते हैं, हीमोफीलिया ए, बी और सी। ये एक आनुवांशिक जीन संबंधी बीमारी है जो कि उस जीन में खराबी से संबंधित है जो जीन शरीर में क्लॉटिंग फैक्टर्स आठ, नौ और 11 के निर्माण के लिए जिम्मेदार है। हीमोफीलिया ए और बी औरतों के मुकाबले पुरुषों में ज्यादा होता है जबकि हीमोफीलिया सी दोनों में बराबर संख्या में हो सकता है।
लक्षण
इस बीमारी के ऐसे लक्षण जिन्हें देखकर तत्काल मेडिकल सहायता की जरूरत हो सकती है उनमें तेज सिरदर्द, लगातार उल्टी, गर्दन में दर्द, धुंधला या डबल दिखाई देना, जोर की नींद महसूस होना और सबसे बढ़कर, किसी चोट से लगातार खून का बहते जाना शामिल हैं।
इलाज
डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि इस बीमारी का कोई ज्ञात इलाज नहीं है। किसी भी आंतरिक या बाहरी रक्तस्राव की स्थिति में मुख्य रूप से इलाज यही है कि मरीज को ताजा खून चढाया जाए। यदि मरीज गंभीर रूप से चोटिल है तो चढाए जाने वाली खून की मात्रा भी बढ़ जाती है।
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